Sunday, December 12, 2010

समां : अमन-चैन की

      मै क्या हु, कौन हूँ? और मेरा अस्तित्व क्या है या फिर मेरा मकसद क्या है ?, ये मै नहीं जनता बल्कि मुझे आकर और जन्म देने वाला ही जनता है. संछेप में -- मै बम हूँ यही मेरा परिचय है, अब आपको उपरोक्त सभी प्रश्नों का जवाब मिल गया होगा पर मेरा मकसद किसी को आहत करना या किसी की ज़िन्दगी लें नहीं है, मै तो बना ही हूँ फटने के लिए या फिर यूं कहें मुझे बनाया ही गया है मानवजाति को मरने के लिए, मै स्वयं किसी का दुश्मन नहीं बल्कि दुश्मन तो वो लोग हैं जो मेरा इस्तेमाल अपने घिनौने मकसद को अंजाम देने के लिए करते हैं. चाहे शीतालाघाट(varanasi) हो या इससे पहले की कोई घटना जिसमे मैंने ना जाने कितनी जिंदगियों को मौत की नींद सुला दिया इसका मुझे दुःख है पर मै करता भी क्या , जिन हांथों में था उन्होंने मुझे इस नापाक काम को अंजाम देने के लिए चुना. मै ये नहीं समझ पता मानवजाति, मानवजाति की दुश्मन क्यूँ? क्यों ये लोग अपने ही जीवन का सर्वनाश अपने ही हांथों करते हैं.
                          मैंने फटने से पहले देखा शीतालाघाट का वो मनोरम दृश्य , गंगा आरती में सम्मिलित हज़ारों की भीड़ जिसमे सभी धर्म-जाती और उम्र के लोग तल्लीन थे ना कोई डर ना कोई भय, कोई द्वेष-भाव का वातावरण भी नहीं, सभी भक्ति में मग्न. पर जिनके इरादे ही नापाक हों ,संवेदनाओं का जिनमे abhav हो , और जिनमे सिर्फ नफ़रत ही भरी हो वो भला इस सुन्दरता को क्या देखते उनको तो बस एक  ही रंग पसंद है रक्त का, एक ही आवाज़ ही पसंद है--चीख-पुकार और रोटर बिलखते लोगो की. उनके इसी बात को अंजाम देने के लिए मै वहां मौजूद था और मैंने उसे बखूबी अंजाम भी दिया ना चाहते हुए भी पर मै कर भी क्या सकता था -- मै तो बना या बनाया ही गया हूँ फटने के लिए.  मै तो अब नहीं हूँ पर सोचता हूँ कि इस सम्पूर्ण मानवजाति के कुछ बाशिंदे मेरा इस्तेमाल अपनी ही जाती के लोगों का लहू बहाने जैसे घ्रणित कार्य करने में कैसे और क्यों करते हैं? पर ये देख के सुकून मिलाता है कि कुछ ऐसे नेक दिल बाशिंदे भी हैं जो आँखों में आंसू और हांथों में मोमबत्ती लिए अमन-चैन कि प्रार्थना करते हैं . उन नेक दिल बन्दों के दिलों में ग़म और जो ज़ख्म गहराई तक उतार दिए गए हैं वो सायद कभीभर ना सके पर उनके हौसले और दिलों में जीने की चाह हमेशा बरक़रार रहेगी .
शीतालाघाट पर आज भी गंगा आरती होती है और आगे भी होती रहेगी और ये सबसे बड़ा तमाचा उन लोगों पर है जो अमन-चैन को कायम होने में खलल पैदा करते हैं . "जिनके दिलों में ऐसी घटनाओं के ज़ख्म हैं और जो रह-रह कर हरे हो जाते हैं उनके ग़म कम हो ना हों , उनकी आखों से बहते आंसू सूखे या ना सूख पायें पर उनकी जलाई अमन-चैन की समां हमेशा जलती रहेगी.