Thursday, May 24, 2012

............................................जीवन और संघर्ष..................................

संघर्ष और  जीवन के मायने जितने गहरे उतने  सरल भी है , जितने उलझे उतने ही  स्पष्ट भी है स्वाभाविक है इनके बीच का रिश्ता अटूट है दोनों एक दुसरे के पूरक है एक के  बिना दुसरे का ना कोई अस्तित्व है ना कोई मायने . हममे से बहुत से लोग अक्सर ये सोचते है कि ये संघर्ष कब ख़त्म होगा पर ये भूल जाते है इसके  बिना जीवन का क्या होगा . जीवन और संघर्ष को एक शब्द के रूप में  लिखना जितना आसान है उतना मुश्किल है उसे शब्दों में बुनकर परिभाषित करना .

हमने  अपने जीवन के हर पल में  किसी ना किसी रूप में संघर्ष किया और करते जा रहे है ... जिसकी शुरुआत हमारे जन्म से शुरू होकर मृत्यु तक निरंतर  चलती रहती है। जब कभी फुरसत के कुछ क्षण में हम अतीत के पन्नो में झांकते है तो अनगिनत ऐसे पल पल आखों के सामने घूमने लगते जिनमे हमने संघर्ष किया . स्कूल की पढाई में अव्वल आने के लिए संघर्ष तो कॉलेज में सबसे आगे रहने के लिए संघर्ष , उनिवेर्सिटी में गोल्ड मेडल पाने के लिए तो कभी खेल के मैदान में चैम्पियन कहलाने के लिए संघर्ष।

पढाई के बाद नौकरी पाने के लिए भी हमने संघर्ष कम नहीं किया सैकड़ों बार नाकामयाबी का स्वाद चखने के बाद भी कामयाब होने के लिए संघर्ष और जब कामयाबी मिल गए तो उसे जीवंत रखने के लिए संघर्ष .
कभी-कभी तो ऐसा लगता है हमने सारी ज़िन्दगी सिर्फ संघर्ष ही किया जीवन जिया ही नहीं पर वास्तविकता तो ये है कि  संघर्ष ही जीवन के पहली और आखिरी सीढ़ी है ..
ये एक सिक्के के दो पहलू  है जिनका आपसी मेलजोल इतना घनिष्ट है कि एक के बिना दूसरे का कोई महत्त्व ही नहीं। एक अगर आईना है तो दूसरा उस आईने में दिखने वाली तस्वीर , एक अगर शरीर है तो दूसरा उसकी परछाई। हम चाहे या ना चाहे इन्हें एक दूसरे  से अलग करके सोचना नामुम्कीम है।

हम हरे या ना रहे सृष्टि में जब भी जीवन पनपेगा संघर्ष स्वत: ही उसके साथ उपजेगा . 
ये सागर तल पर चलने वाली वो किश्ती है जिसे लहरों के थपेड़ों को सहना भी है , साहिल पे पहुचना भी है।