Tuesday, February 8, 2011

अनोखी पाठशाला...


बुंदेलखंड क्षेत्र जिससे आप सभी वाकिफ होंगे कुछ समय पहले मुझे भी यहाँ  आने का मौका मिला ऐसे तो मै बहुत सी जगह जा चुका हूँ पर ये पहला मौका रहा जब मै किसी आदिवासी गाँव ( बिगाई, ललितपुर से ४५ किमी दूर )  में गया जो बाहरी दुनिया से काफी कटा हुआ है" यहाँ मै आया एक प्रशिक्षण शिविर के दौरान यहाँ आने से पहले मै, जिसे ये नहीं पता था कि आखिर इस प्रशिक्षण का क्या मकसद है और एक बात मेरे जेहन में हमेशा बनी रही वो ये कि मै यहाँ क्यूँ हूँ या मेरी मौजूदगी का यहाँ मतलब क्या है पर आज शायद मै यह कह सकता हूँ कि ना मैंने इस प्रशिक्षण के दौरान बहुत कुछ सिखा बल्कि एक ऐसे अनुभव को भी अपने साथ लेकर आया जो कहीं ना कहीं  मेरी ज़िन्दगी में कुछ रोशनी देगा.



                                           यूँ तो हर इंसान कि ज़िन्दगी में कुछ ना कुछ कमियां जरुर होती है पर यहाँ के लोगों कि स्तिथि अभावग्रस्त श्रेणी में आती है ऐसा नहीं ये लोग खुश नहीं हैं ये खुश हैं विकास की मुख्य धरा से काफी दूर फिर भी अपनी ज़िन्दगी में मस्त .यहाँ भी बच्चे स्कूल  जाते हैं पर तादाद बहुत कम है वजह कई शारी हैं पर मुख्य वजह आर्थिक है. जब चीथड़ों में जवानी  ढकी हो और बचपन अर्धनग्न हो तो "स्लेट और चाक " किस काम का फिर भी यहाँ के कुछ छात्र जो पढ़े लिखे हैं वो यहाँ की कामकाजी महिलाओं को पढ़ने का श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं . रोजाना दोपहर में २ घंटे की क्लास में घरेलु महिलाएं एक साथ यहाँ पढ़ने आती हैं और तो और इनके पढ़ने पढ़ाने का तरीका भी बिलकुल अलग है . ऐसे में मुझे भी 

इन महिलाओं को  
पढ़ाने का मौका मिला  हलाकि भाषा की थोड़ी दिक्कत
 जरूर रही पढ़ाने का ये अनूठा अनुभव काफी हद तक 
संतुष्टि  प्रदान करने वाला रहा. पहली बार अबेकस के
 माध्यम से गिनती सिखाना काफी रुचिकर तो था ही 
और जितनी रूचि से मै पढ़ा रहा था उससे कहीं ज्यादा
 रूचि उनके सिखाने में दिखी. सर्दी की धुप और पेड़
 की छाँव  में बैठ कर उनसे बातें करना उनका अनुभव
 जानना  और अपने ज्ञान को उनसे बांटना कहीं ना कहीं 
सुखप्रद तो रहा पर दुःख  की घटा भी घिरती रही छंटती रही.
आभाव कि जमीन पर सिखाने की ललक अपने को मुख्य धरा से जोड़ने की जुगत सराहनीय तो है पर कहीं ना कहीं  टीस है जो दृश्य पटल पर एक लकीर खींचती है ....लकीर जो दर्शाती है विकास और पिछड़ेपन की खाई कितनी गहरी हो चली है  . हालाजी इस खाई को पाटने का प्रयास जारी है पर इतनी गहराई को भरने में कितना समय लगेगा इसका अंदाजा शायद कोई ना लगा सके  पर आशा और उम्मीद की एक किरण अभी भी बाकी है जो शायद इस आभाव/कमी को दूर करने में सफल हो सके. 






VIVEK KUMAR SRIVASTAVA
PROJECT CO-ORDINATOR
9554951250, 8081692336

8 comments:

  1. aap sach me bohot accha kaam kar rahe hai.. logo ko mukhya dhara se jodna hamare desh ke vikas ke liye bohot jaroori hai.... :)
    aur aap likhte bhi bohot accha hai...
    जब चीथड़ों में जवानी ढकी हो और बचपन अर्धनग्न हो तो "स्लेट और चाक " किस काम का.... ye panktiya dil tak pahuchti hai..

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  2. अनुभव बांटने का धन्यवाद. स्वागत.

    सदाबहार देव आनंद

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  3. अनुभव बांटने का धन्यवाद|
    बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ|

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  4. आदरणीय,

    आज हम जिन हालातों में जी रहे हैं, उनमें किसी भी जनहित या राष्ट्रहित या मानव उत्थान से जुड़े मुद्दे पर या मानवीय संवेदना तथा सरोकारों के बारे में सार्वजनिक मंच पर लिखना, बात करना या सामग्री प्रस्तुत या प्रकाशित करना ही अपने आप में बड़ा और उल्लेखनीय कार्य है|

    ऐसे में हर संवेदनशील व्यक्ति का अनिवार्य दायित्व बनता है कि नेक कार्यों और नेक लोगों को सहमर्थन एवं प्रोत्साहन दिया जाये|

    आशा है कि आप उत्तरोत्तर अपने सकारात्मक प्रयास जारी रहेंगे|

    शुभकामनाओं सहित!

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    (देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
    फोन : 0141-2222225 (सायं सात से आठ बजे के बीच)
    मोबाइल : 098285-02666

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  5. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  6. " भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" की तरफ से आप को तथा आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामना. यहाँ भी आयें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ... www.upkhabar.in

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