Friday, September 11, 2009

छोड़ो कल की बातें




वर्त्तमान में हमारे दमन में इतनी समस्याएँ , इतने मुद्दे हैं फ़िर भी हम अपने भूत से परेशां हैं आख़िर क्यों? क्या हमारा भूत हमारे वर्त्तमान और भविष्य की योजनाओं से ज्यादा जरुरी है।

देश की आर्थिक स्तिथि कैसे सुदृढ़ हो ?
दोहा वार्ता को कैसे सफल बनाया जाए?
भारत-इरान गैस पाइपलाइन का समाधान कैसे हो?
कश्मीर की समस्या को कैसे हल किया  जाए?
बेरोजगारी जो मुह फाड़े खड़ी है उसका मुह कैसे बंद किया जाए ? आतंकवादी गतिविधियों पर कैसे नियंत्रण किया जाए?
सूखे से कैसे निपटा जाए ?
भारतीय सीमाओं में होने वाली घुसपैठ को कैसे रोका जाए?

इतनी सारी समस्याओं को गंभीरता से लेने और कोई माकूल समाधान निकालने की बजे हम अपने ही भूत से से परेशां हैं।
जसवंत सिंह ने एक किताब क्या लिख दी कम्पनी ने उन्हें बिना किसी सूचना के पिंक स्लिप दे दी उनकी ३० वर्षों की सेवा पर भी गौर करना जरुरी नही समझा । इससे बड़ी मंदी की मार क्या होगी।
जिनका ये मानना है की देश के विभाजन में जिन्ना का हाथ था या फ़िर जो लोग इस बात को मानते हैं की विभाजन में नेहरू या पटेल का हाथ था तो इस बात पर ध्यान देना जरुरी है की विभाजन किसी एक व्यक्ति के बस की बात नही बल्कि सभी कहीं न कहीं और किसी न किसी तरह जिम्मेदार होते हैं।
ऐसे में जसवंत सिंह की किताब को लेकर इतना बखेडा क्यों?

क्या ऐसा नही मालूम होता की हम भूत की घटनाओं पर राजनीती करते हुए अपने वर्त्तमान की समस्याओं की अनदेखी कर रहे हैं?
जब भी देश में कोई विपत्ति आती है उसका सबसे ज्यादा प्रभाव उस देश की जनता के ऊपर पड़ता है ऐसे में क्या जरुरी है?
-जिन्ना , नेहरू, पटेल या जसवंत सिंह की किताब पर राजनीती करना।
या
-सभी राजनीतिक पार्टियों का एक जुट होकर उपरोक्त सभी समस्याओं का स्थाई निदान और भविष्य के लिए एक नई और सही रणनीति तैयार करना।
फैसला राजनेताओं के हाथ में है॥

हमनेसे सभी ने बचपन में स्कूलों में १५ अगस्त , २६ जनवरी और २ अक्तूबर को एक गीत सुना होगा ----

छोड़ो कल की बातें , कल की बात पुरानी,
नए दौर में लिखेंगे हम मिलके नयी कहानी

तो क्यों न हम भी कल की पुराणी बातों को छोड़कर एक नयी कहानी लिखें जो आजहमारा सुनहरा इतिहास बन सके और ये तभी सम्भव है जब हम सब मिलकर एक ठोस कदम उठाएं जो हमें विकासशील से विकसित देश की श्रेणी में खड़ा कर सके।

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