Tuesday, September 14, 2010

ज़िन्दगी...... एक खुबसूरत एहसास

ज़िन्दगी एक खुबसूरत एहसास है शायद कुदरत का एक नायब तोहफा. पर हर किसी के लिए इसके मायने अलग-अलग हैं पर है तो ये शब्द भर ही जिसमे अनंत परिभाषाएं पनप रही है और समय के साथ इनका जन्म होता रहेगा. ज़िन्दगी जिसने अपने जीवनकाल में ना जाने कितने रंगों को संजो रखा है, अनगिनत उतार-चढाव, संघर्षों, गमो और खुशियों से भरी पोटली को अपने सीने से लगा राखी है, अनंत अनुभवों कि जननी है पर हममे से कुछ ऐसे भी हैं जो आज भी ज़िन्दगी के मायने ही नहीं समझ पाए. अगर हम कल्पना भी करे तो भी उस छाँव का क्या अस्तित्व जब धुप ही ना हो, उस पेड़ का क्या अस्तित्व जब उसमे फल-फूल ही ना हो, उस आसमान का क्या जिसमे पंख फैलाये उड़ाते पंछी ही ना हो, उस रात की सुन्दरता क्या जब चाँद -सितारे ही ना हो, अथाह गहले सागर की खूबसूरतीइ ही क्या जिसमे रंग-बिरंगी मछलियाँ ही ना हो. सुख-दुःख के चंद लम्हों के बिना ज़िन्दगी बिलकुल वैसी है जैसे बिना रंगों के इन्द्रधनुष...... बेरंग, बदरंग.

                            मीलों का सफ़र तय कर चुकी ये ज़िन्दगी अभी ना जाने कितनी दूरियों और तय करेगी, ना जाने कितने मोड़ ले चुकी फिर भी थकती नहीं निरंतर चलती जाती है आगे बढती जाती है और एक सन्देश देती जाती है सिर्फ और सिर्फ चलते जाना है. जिन्गदी कभी ठहरती नहीं क्योकि जिस पल जिस मोड़ पे वो ठहर गई उसी पल उसका सामना एक ऐसी सच्चाई से होगा जो उसके सफ़र पर पूर्णविराम  लगा देगी वो सच क्या है ज़िन्दगी जानती है वो कोई अनजान नहीं बल्कि उसका अपना साया है वो "मौत" है .
जिनगी किसी किताब के पहले शब्द से शुरू होती है और हजारों -लाखों शब्दों के मायाजाल को पार करती है साथ में अनंत अनुभवों को  अपने में में आत्मसात करती  हुई आखिरी अध्याय के  उस अंतिम शब्द पर पहुंचती है जहाँ उसे मौत का दामन  थामना है .
ऐसा नहीं है की ज़िन्दगी  मौत के साथ ही अपने अस्तित्व को समाप्त  कर लेगी वो तो एक शै है जो हमेशा चलेगी क्योंकि  ज़िन्दगी के गर्भ में एक ज़िन्दगी पनप रही है सांस ले रही है, धड़कन बनकर धड़क रही  है वो फिर इस मायावी दुनिया में जन्म लेगी , फिर चलेगी और एक नए सफ़र पे निकल पड़ेगी अपने हम साया से मिलने और अपने पीछे छोड़ जाएगी अनन्त अनुभवों और खट्टे मीठे पलों की एक दास्ताँ........
ज़िन्दगी एक खुबसूरत एहसास है
ज़िन्दगी कुछ  खट्टे मीठे पलों का एक छोटा सा ख्वाब  है
फिर भी ज़िन्दगी चंद साँसों की गुलाम है...

1 comment:

  1. जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबह शाम

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