Friday, September 17, 2010

Twin-Tower या ground zero : एक दांस्ता



मै twin tower हूँ आज से कुछ वर्षों पहले तक मै अमेरिका का गौरव हुआ करता था पर ११ sept को मैंने अपनी अंतिम सांस ली एक घटना ने मेरे अस्तितत्व को छिन्न- भिन्न कार दिया. "जब कोई ज़िन्दगी समाप्त हो जाती है तो उसके साथ ही एक संसार का अंत हो जाता है". इस एक घटना ने ना केवल मेरे बल्कि मुझसे जुड़े हज़ारों दुनिया का अंत कर दिया . मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ मै नहीं  जानता . ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जिनका कोई माकूल जवाब नहीं है. पर ये सच है जब कोई संसार समाप्त होता है तो एक नए संसार का जन्म भी होता है.




जिस पल मेरा अंत हुआ उसी पल एक नयी दुनिया ने जन्म लिया जिसे आज लोग ground zero  के नाम से जानते हैं कोई कुछ भी कहे पर है तो ये मेरा ही आधार मेरे अस्तित्व का एक अंश.
                                        आज भी लोग मुझसे जुड़े उन तमाम ज़िन्दिगियों की याद में यहाँ आते हैं जिन्होंने मेरे साथ ही अपने जीवन कि अंतिम सांस ही. मै नहीं हूँ फिर भी देखता हूँ लोगों के आंशुओ से भरी आखें , मै सुन सकता हूँ उनके ग़मों की सिसकियों को , महसूस कार सकता हूँ उन एहसासों को जो उनके दिलों में अपने अपनों के लिए आज भी जिंदा है. मै अपने चरों  ओर अटूट प्रेम के अनूठे संगम को देखता हूँ और महसूस करता हूँ कि मेरे आँखों की चमक पहले से तेज़ हो गई है पर मेरी पलके भीगी हैं. मै सोचता हूँ और कई वर्षों से समझने की कोशिश कर रहा हूँ आखिर उन लोगों ने क्या हांसिल कर लिया जिन्होंने ११ sept की घटना को अंजाम दिया पर आज भी निरुत्तर हूँ.
                                                                                             मै आज भी अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ क्योंकि कल मै twin tower था जो आंसमां की बुलंदियों पर था और आज मै अनगिनत जिंदगियों और उनके पवित्र एहसासों से जुड़ा ground zero हूँ एक ऐसा zero जिसने पुरे संसार को अपने में आत्मसात कर लिया है. 

मै तो बस अपने आधार पर बिछे उन फूलों को देख रहा हूँ और महसूस कर रहा हूँ उनसे आने वाली खुशबु और सुन्दर एहसासों को जिसे ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी को समर्पित किया है.

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