सदी का एक और सूर्यास्त हो गया , अनगिनत अनुभवों और खट्टे-मीठे पलों को अपने में आत्मसात कर अनंत सागार के पीछे कहीं जा छुपा और दे गया एक नया सवेरा - नयी उम्मीद , नयी उमंग और नए पलों की ऐसी अबूझ पहेली जो परत दर परत खुलेगी .
हमने सूर्यास्त से पहले ना जाने ख्वाब बुने कुछ पूरे हुए तो कुछ अधूरे ही रह गए, कितने बीज बोये कुछ अंकुरित हुए तो कुछ समय की गर्त में ही रह गए . ना जाने कितनी बार आखें नाम हुई और कितनी बार होठों पर मुस्कान खिली . ना जाने कितने अनजान चेहरे अपने बन गए और कितने ही अपने ग़म की परछाई बनकर दूर चले गए. हमने क्या खोया क्या पाया शायद इसका हिसाब हम ना लगा पायें पर हमने सदी के इस सूर्यास्त के अंतिम विदाई के लिए हाथ हिलाया दिलों में ग़म और ख़ुशी के अनूठे संगम को सजोते हुए .
नए साल की नई बहार ने मानो सभी को अपने में रंग दिया है. हममे से बहुत से लोगों ने अनगिनत ख्वाबों की माला फिर से पिरोना शुरू कर दिया है, हमने पहले से ज्यादा जोश व ताज़गी के साथ अपने कदम मंजिल की ओर बढ़ा दिए हैं कोहरे की धुंड से अलग हमारी मंजिल हमें सामने नज़र भी आ रही है हमने रास्ते की परवाह करना भी छोड़ दिया है पर अभी तो ये शुरुआत है पहेली की तो बस अभी एक परत ही खुली है समय की गर्त में मौजूद बाकी परतें खुलना अभी बाकी है और जैसे- जैसे वो खुलेंगी हमें क्या देंगी और उसके बदले में हमसे क्या-क्या लेंगी इसका अंदाजा भी लगा पाना मुश्किल है पर एक बात जो सार्वभौमिक सत्य है कि समय का चक्र चलता जायेगा और फिर एक सूर्यास्त होगा हम फिर उसकी विदाई में जशन मनाएंगे और एक नए सवेरे के स्वागत में अपनी पलकें बिछायेंगे.
VIVEK KUMAR SRIVASTAVA
PROJECT CO-ORDINATOR
9554951250, 8081692336
विवेक हर नया आलेख ये बता रहा है की तुमहरी लेखनी परिपक्व हो रही है बधाई
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